دیوان ناصر کاظمی/غزل۔56
دیوان ناصر کاظمی | شروعات | غزل۔1 | غزل۔2 | غزل۔3 | غزل۔4 | غزل۔5 | غزل۔6 | غزل۔7 | غزل۔8 | غزل۔9 | غزل۔10 | غزل۔11 | غزل۔12 | غزل۔13 | غزل۔14 | غزل۔15 | غزل۔16 | غزل۔17 | غزل۔18 | غزل۔19 | غزل۔20 | غزل۔21 | غزل۔22 | غزل۔23 | غزل۔24 | غزل۔25 | غزل۔26 | غزل۔27 | غزل۔28 | غزل۔29 | غزل۔30 | غزل۔31 | غزل۔32 | غزل۔33 | غزل۔34 | غزل۔35 | غزل۔36 | غزل۔37 | غزل۔38 | غزل۔39 | غزل۔40 | غزل۔41 | غزل۔42 | غزل۔43 | غزل۔44 | غزل۔45 | غزل۔46 | غزل۔47 | غزل۔48 | غزل۔49 | غزل۔50 | غزل۔51 | غزل۔52 | غزل۔53 | غزل۔54 | غزل۔55 | غزل۔56 | غزل۔57 | غزل۔58 | غزل۔59 | غزل۔60 | غزل۔61 | غزل۔62 | غزل۔63 | غزل۔64 | غزل۔65 | غزل۔66 | غزل۔67 | غزل۔68 | غزل۔69 | غزل۔70 | غزل۔71 | غزل۔72 | غزل۔73 | غزل۔74 | غزل۔75 | اختتام |
غزل
پھر نئی فصل کے عنواں چمکے
ابر گر جا گلِ باراں چمکے
آنکھ جھپکوں تو شرارے برسیں
سانس کھینچوں تو رگِ جاں چمکے
کیا بگڑ جائے گا اے صبحِ جمال
آج اگر شامِ غریباں چمکے
اے فلک بھیج کوئی برقِ خیال
کچھ تو شامِ شب ہجراں چمکے
پھر کوئی دل کو دکھائے ناصر
کاش یہ گھر کسی عنواں چمکے
دیوان ناصر کاظمی